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किसी से कोई शिकायत नहीं की, राम-लक्ष्मण ने - किशन शर्मा

Tributes - 22 May 2021

किसी से कोई शिकायत नहीं की, राम-लक्ष्मण ने - किशन शर्मा राम-लक्ष्मण, संगीत निर्देशकों की एक जोडी का नाम था । सुरेन्द्र हेन्द्रे और विजय पाटिल, दोनों ही सुरीले वादक थे । सुरेन्द्र मुख्यत: बांसुरी बजाते थे, और विजय अकॉर्डियन बजाते थे और गाते भी थे । प्रख्यात मराठी फ़िल्म निर्माता-अभिनेता दादा कोंडके ने अपनी सफ़लतम फ़िल्म “पांडू हवलदार” में सुरेन्द्र और विजय को संगीत निर्देशक के रूप में पहला अवसर प्रदान किया और उन्होंने ही इस जोडी को राम-लक्ष्मण नाम भी दिया । “पांडू हवलदार” की अप्रत्याशित सफ़लता का स्वाद सुरेन्द्र न चख सके और न देख सके । उससे पहले ही उनका निधन हो गया । तब विजय पाटिल ने भविष्य में राम-लक्ष्मण के नाम से ही स्वयं काम करने का निर्णय ले लिया । तब से विजय पाटिल को संगीत जगत मे। राम-लक्ष्मण के नाम से ही जाना जाता रहा है । नागपुर में जन्मे राम-लक्ष्मण ने ऑर्केस्ट्रा के कार्यक्रमों से शुरूवात की । उनके साथ ड्रम बजाने वाले बाबा स्वामी और ढोलक बजाने वाले वामन राव शुरू से ही जुडे थे । बाबा स्वामी से विजय पाटिल ने एक वादा किया था कि शादी के बाद अगर एक के घर में बेटा और दूसरे के घर में बेटी का जन्म हुआ तो उन दोनों का विवाह करके अपने पुराने सम्बन्धों को और मज़बूत करेंगे । एक दिन वामन राव ने अपनी सोने की अंगूठी बेच कर विजय का मुम्बई जाने का रेल का टिकिट खरीद कर ज़बरदस्ती विजय को मुम्बई भेज दिया, ताकि वह अपने भाग्य को आज़मा सके । मुम्बई में थोडी जद्दोजहद के बाद उन्हें संगीत निर्देशन का अवसर मिल गया । विजय ने बाबा स्वामी और वामन राव को अपने साथ वाद्य बजाने के लिये बुला लिया, परंतु उन दोनों को संगीत की नोटेशन का ज्ञान नहीं था । वे तो ऑर्केस्ट्रा में सुन सुन कर ही अपने वाद्य बजाते थे । इसलिये वे फ़िल्म जगत में काम नहीं कर सके । फ़िर अपने पुराने मित्र गीतकार तिलकराज थापर और रवीन्द्र रावल को फ़िल्मों में गीत लिखने के अवसर दिये, और अपनी पुरानी ऑर्केस्ट्रा की साथी गायिका बेहरोज़ बलसारा चटर्जी और पुराने मित्र गायक एम0 ए0 कादर को फ़िल्मों में गाने का अवसर भी दिया । हिन्दी फ़िल्म “मैंने प्यार किया” और “हम आपके हैं कौन” की अपार सफ़लता के बाद फ़िल्मों की भीड लगने लगी । “हम साथ साथ हैं” को उतनी सफ़लता नहीं मिली । अन्य अनेक फ़िल्मों का संगीत सुरीला होने के बावजूद फ़िल्में नहीं चलीं । राम-लक्ष्मण को कम काम मिलने लगा । लेकिन वे हर दिन अपने संगीत कक्ष में अलग अलग धुन बनाकर उनके लिये कुछ शब्द खुद ही लिखकर कैसेट में अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड करके रखते रहते थे । ऐसे सैंकडों कैसेट उनके कक्ष में भरे रहते थे । साथ ही अपने धार्मिक गुरुओं के लिये हर वर्ष कम से कम दो बार आठ आठ रचनाएं रचते रहते थे ताकि उनके जन्मदिन के समारोह में वे प्रस्तुत कर सकें । माटुंगा में साईं निवास का उनका संगीत कक्ष जो उनके अच्छे दिनों में नीचे से ऊपर तक खचाखच भरा रहता था, फ़िर पूरी तरह खाली रहने लगा । अपनी अपार सफ़लता और लोकप्रियता के बीच भी वे अपने वादे को भूले नहीं और अपने पुराने साथी बाबा स्वामी की पुत्री मीतु के साथ अपने पुत्र अमर का विवाह कर दिया । उनके स्वागत समारोह की देख रेख की ज़िम्मेदारी मुझे ही सौंपी गई थी । एक घटना मैं जीवन भर भूल नहीं सकता । जब मैं भी अपनी सफ़लता और लोकप्रियता की ऊंचाई पर था तब मुझसे चिढकर मेरे ही एक सहयोगी ने मुझे कुछ ऐसा खिला दिया था कि मेरी आवाज़ ही पूरी तरह बंद हो गई थी । मैं बोल ही नहीं सकता था और मेरे मन में आत्म हत्या करने का विचार आने लगा क्योंकि जो व्यक्ति अपनी आवाज़ के लिये जाना जाता था, उसकी आवाज़ ही नहींब रहे तो उसके रहने का कोई मतलब नहीं रह गया था । तभी राम-लक्ष्मण ने मुझसे कहा कि गुरू पूर्णिमा पर शिरडी में साई मंदिर के प्रांगण में राम-लक्ष्मण नाइट का आयोजन किया गया है और उसका संचालन मुझे करना है । मैंने बहुत विनम्रता पूर्वक मना कर दिया क्योंकि मैं बोल ही नहीं सकता था । शाम को अभिनेत्री टुनटुन जी ने मुझे फ़ोन करके डांट दिया और कहा, ‘वहां से बुलावा आया है तो तू क्यों मना कर रहा है । तू नहीं बोल पायेगा तो हम सब हैं न बोलने के लिये । तुझे चलना है बस” । शिरडी में कार्यक्रम शुरू करने के लिये मैं माइक पर गया तो मुंह से कुछ आवाज़ ही नहीं निकल सकी । तभी पूरे प्रांगण में बिजली गुम हो गई और लगभग 15 मिनट तक अंधेरा छाया रहा । बिजली आई तो माइक भी शुरू हुआ । मैं वापस माइक पर बोलने गया । “आवाज़ की दुनिया के दोस्तो, किशन शर्मा का नमस्कार” । विविध भारती पर अनेक वर्ष से लोगों ने मेरी आवाज़ और नाम सुन रखे थे, तो तुरंत ज़ोरदार तालियां बज उठीं । मंच पर सारे कलाकार तालियां बजा रहे थे और “जय हो” चिल्ला रहे थे । वे आश्चर्य चकित और प्रसन्न थे क्योंकि मैं बोल पा रहा था । टुनटुन जी मटकती हुई मेरे पास आईं और मुझे चूम कर बोलीं, “देखा मेरे लाल, हो गया न कमाल” । लोगों को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मंच पर यह सब क्यों हो रहा था । मैंने उस कार्यक्रम में गाना भी गाया । बाद में हम लोगों का सत्कार भी मंदिर समिति की तरफ़ से किया गया । पहले जैसी तो नहीं, लेकिन फ़िर भी बोलने लायक, गाने लायक आवाज़ वापस मिल गई, यह एक आश्चर्यजनक घटना मेरे जीवन की अवश्य रही है, जिसका पूरा श्रेय राम-लक्ष्मण को ही जाता है । कुछ वर्ष से मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के बाद, वे नागपुर में अपने पुत्र अमर और पुत्र वधु मीतु के पास ही रहने आ गये थे । अमर मुम्बई में संगीत निर्देशन करता रहता है और मीतु नागपुर में सौंदर्य प्रसाधन के कार्य में व्यस्त रहती है । राम-लक्ष्मण की एक विशेषता का उल्लेख अवश्य करना चाहूंगा । उन्होंने कभी किसी की बुराई भी नहीं की और काम न मिलने पर किसी से कोई शिकायत भी नहीं की । 21 मई 2021 की रात हार्ट अटैक से उनका नागपुर में निधन हो गया । मेरे बहुत पुराने मित्र और साथी के निधन पर मैं विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं ।

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