मैं उनके साथ उनकी पहली फिल्म से, उनके पहले काम से जुड़ा रहा, वो 'तेरी जवानी बड़ी मस्त मस्त है' उस गीत के साथ आखिर तक में उनके साथ रहा.
मुझे तो सच बताऊँ उनकी तबीयत नासाज़ है यही पता नहीं था. कौन था बताने वाला? मुझे तो सीधे खबर लगी कि 'वाजिद नो मोर'. हिल गया मैं. मोहसिन (मैनेजर) को फोन किया तो पता चला कि तैयारियाँ चल रही हैं मय्यत की. सोचो जिस को बचपन से देखा खिलाया, वो अब नहीं था.
इन दोनों के साथ काम करते हुए कभी नहीं लगा कि रिकॉर्डिंग बजा रहा हूँ. इनके वालिद मियां शराफत खान भाई के साथ ऐसे संबंध रहे कि दुख सुख के साथी. बोला करते थे कि रशीद बच्चों को पैरों पे खड़ा करना है. मैं हमेशा कहता, मेहनती हैं और काम जानते हैं, बस सही प्रोजेक्ट मिलने की देर है. फिर पहले ही गाने ने उन्हें बना दिया.
मेरे लिए तो सात खून माफ थे. क्या वाजिद क्या साजिद! दोनों बहुत मोहब्बती थे. जब जैसा बोला, उन्होंने माना. राउडी राठौर के एक गाने के समय मैंने कहा ऐसा फड़कता गाना बनना चाहिये कि दिल झूम जाये और उसमें बेंजो का मेरा सोलो पीस होना चाहिए. आप सुन लीजिये.
दोनों भाइयों के बारे में और क्या कहूँ खासतौर से वाजिद कमाल का, कभी भी उससे बात करो हमेशा जब तक कि मैं खुश ना हो जाऊँ, डटा रहता. बरसों से उठते-बैठते रहे. संगीत में भी खास किस्म की खनक!
वालिद साहब का दोस्त होने के नाते एक अपनापन सा बना रहता था. कैसी भी स्थिति हो, मुस्कुराता हुआ उसका चेहरा और नरम मिज़ाजी दिल छू लेती थी. स्टूडियो में भी माहौल काफी जोश और मस्ती भरा.
अल्लाह उनकी मगफिरत करे!