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Haribans Malhotra (Hari - Arjun) is No more

Tributes - 12 Apr 2021

जिस संगीतकार के बारे में कहा जाता रहा कि रहमत उल लील आलमीन हाजी मोहम्मद रफी साहब ने उनका पहला गीत गाने के बाद जितना पारिश्रमिक उन्हें मिला उसमें उतने ही अपनी ओर से मिला उनके जेब में रख दिये और पैर छूकर कहा कि आप गुरुवर हैं वो सरदार हरिबंस मल्होत्रा फानी हो गये. वाहे गुरु के हवाले एक और प्यारी शख़्सियत! उनके साझेदार अर्जुन छाबड़ा काफी पहले से संसारी सुख त्याग जोगी जीवन जी रहे हैं और नानूजी के रूप में अंबाला क्षेत्र में पूजनीय हैं.

हरि-अर्जुन की जोड़ी ने फिल्में कम ही कीं लेकिन हुनर खूब बिखेरा.

हरिबंसजी फैजाबाद से और अर्जुनजी अबोहर से स्वप्न नगरी आये और दोनों के समान सपने ने साथ बना दिया, दोनों ही रफी साहब के मुरीद. अर्जुनजी मदनमोहन से मुतअस्सिर थे जबकि हरिजी गुणी संगीतकार एसएन त्रिपाठी के सहायकों में शुमार हो चुके थे.

ये वो दौर था जब किसी भी नये संगीतकार के लिये खुद को स्थापित कर पाना असंभव सा लगता था. ऐसे संघर्ष के दौर में यदि हरि अर्जुन को फिल्म भी मिल गई और इस जोड़ी की आधुनिक सामयिक धुनों ने पहली ही फिल्म से श्रोतावृंद का ध्यान खींचा तो ये इनकी प्रतिभा और बुलंद इरादों का परिणाम था. रफी साहब के उपलब्ध न होने से पहला गीत 'प्यार पुकारे सिंगार पुकारे बहार पुकारे' आशा भोसले के साथ महेंद्र कपूर ने गाया लेकिन फिर बाकी दो गीत रफी साहब ने गाये. अर्जुनजी के लिए रफी साहब का उनके हार्मोनियम पर से हाथ उठा कर चूम लेना जीवन भर की सौगात बन गया. 

हरि अर्जुन पहली फिल्म 'आशियाना' से पहचान बनाने में सफल रहे. फिर कुछ हादसे सामने आये. इन्हें दो बड़ी फिल्में मिलीं, तत्कालीन महानायकों के साथ. जिस दिन अनुबंध हस्ताक्षरित होना था, उससे ठीक एक दिन पहले 'वल्लाह क्या बात है' , 'लाट साहब' और 'दूर नहीं मंज़िल' जैसी फिल्में बना चुके निर्देशक और निर्माता हरि वालिया का निधन हो गया.

ऐसे ही एक दो और हादसों ने अर्जुनजी को इस कदर तोड़ दिया कि वे शहर छोड़ वाहे गुरु की शरण चले गए. हरिजी के लिए अब राह कठिन थी पर सच्चे सिपाही की तरह डटे रहे और कई संगीतकार उनके शिष्य हो गये!

पारखी ऐसे कि कौन कितने पानी में है, बखूबी जान लेते और उसे सही सलाह भी देते. कई भटकते हुए मुंबई चले आये मतिभ्रमियों को उन्होंने अपनी तरफ से टिकट कटवा कर उनकी दुर्गति होने से बचाया. 

आज होते तो 81वां जन्मदिन मना रहे होते. हरिबंसजी के लिए मुंबई में जमे रहने के पीछे उनकी पत्नी मनजीत कौर जी का बहुत बड़ा योगदान रहा. हरिबंसजी उनके बिना जी ही नहीं सके. पत्नी के जाने के ठीक सौ दिन बाद वे भी उनसे जा मिले 7 एप्रिल को.

 

https://youtu.be/sEnfvjjY9Jg

 

https://youtu.be/XslsaKt6kyE

 

रविराज प्रणामी 

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