- Raviraj Pranami | raviraj1007@gmail.com
जगजीत कौर à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़ा नाम हो सकता था। लेकिन अपने नाम को सà¥à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करने से बेहतर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• आदरà¥à¤¶ पतà¥à¤¨à¥€ के रूप में उà¤à¤° के आना पसंद किया। ख़यà¥à¤¯à¤¾à¤® साहब के संगीत को सà¥à¤¤à¤°à¥€à¤¯ बनाये रखने और उसमें उमराव जान जैसी नवीनता और ताज़गी बनाये रखने के पीछे गà¥à¤£à¥€ जगजीतजी हमेशा बराबरी के साथ शरीक रहीं।
‘सिमटी हà¥à¤ˆ ये घड़ियां फिर से ना बिखर जायें’ जैसी धà¥à¤¨à¥‡à¤‚ जगजीतजी की ही संजोई हैं और खयà¥à¤¯à¤¾à¤® साहब चाहते à¤à¥€ रहे कि ‘खयà¥à¤¯à¤¾à¤® – जगजीत कौर’ की जोड़ी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हो पर जगजीतजी अपने खाविंद के नाम में ही खà¥à¤¦ को देखती रहीं। इस बीच इकà¥à¤•à¥‡-दà¥à¤•à¥à¤•à¥‡ गीत गाते हà¥à¤ गायिका के रूप में पहचान बनाठरखी उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने। हां, ख़यà¥à¤¯à¤¾à¤® साहब की मà¥à¤–à¥à¤¯ सहायक के रूप में जगजीतजी का नाम जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ रहा और परà¥à¤¦à¥‡ के पीछे रह कर वे मà¥à¤–à¥à¤¯ à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤¤à¥€ रहीं। धà¥à¤¨à¥‹à¤‚ को शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ की गरिमा के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• अपेकà¥à¤·à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤ आसान बनाना उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ खूब आता था। वे जगजीतजी ही थीं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने साहिर साहब या जां निसार अखà¥à¤¤à¤° साहब की शायरी पर सरल सी धà¥à¤¨ चढ़ाने में महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¥‚मिका अदा की!
ख़यà¥à¤¯à¤¾à¤® साहब की अधिकांश धà¥à¤¨à¥‡à¤‚ पहाड़ी राग पर आधारित होती थीं लेकिन इसके पीछे à¤à¤• सच ये है कि चलन उनका पहाड़ी हà¥à¤† करता था वरना तो जगजीतजी बताने लगतीं कि राग दà¥à¤°à¥à¤—ा, यमन, मारà¥à¤¬à¤¿à¤¹à¤¾à¤—, बिलावल और à¤à¥€ कई रागों पर आधारित हैं उनके गीत!
दादर के ओवर बà¥à¤°à¤¿à¤œ पर आमना सामना हà¥à¤† था दोनों का, योग बनना था, सो इससे पहले कि जगजीतजी कोई और क़दम उठातीं, ख़यà¥à¤¯à¤¾à¤® साहब ने अपना बतौर संगीतकार परिचय दिया। ‘शाम ठग़म की क़सम’ के सरà¥à¤œà¤• पर कौन ना फिदा होता! कई गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ देने वाले रसूखदार सरदार शिव चरण सिंह सिदà¥à¤§à¥‚ की होनहार बेटी जगजीत कौर सिदà¥à¤§à¥‚ ने परिवार और समाज के कड़े विरोध के बावजूद मोहमà¥à¤®à¤¦ ज़हूर हाशमी के साथ जीवन बिताने का निशà¥à¤šà¤¯ कर लिया था। यà¥à¤µà¤¾ मोहमà¥à¤®à¤¦ ज़हूर हाशमी को ख़यà¥à¤¯à¤¾à¤® साहब जो बनना था।
दोनों à¤à¤• आदरà¥à¤¶ विवाह में बंधे। ये उन दिनों के गिने-चà¥à¤¨à¥‡ अंतरसामà¥à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• विवाहों में से à¤à¤• था। खयà¥à¤¯à¤¾à¤® साहब की नमाज इबादत और जगजीतजी का वाहेगà¥à¤°à¥ दा खालसा à¤à¤• ही छत के नीचे बना रहा। खयà¥à¤¯à¤¾à¤® साहब ने जगजीतजी के बेटे पà¥à¤°à¤¦à¥€à¤ª की परवरिश में पिता की à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤ˆ और 2012 में पà¥à¤°à¤¦à¥€à¤ª के आकसà¥à¤®à¤¿à¤• निधन तक सब सà¥à¤šà¤¾à¤°à¥‚ रूप से चलता रहा।
‘तà¥à¤® अपना रंज ओ ग़म अपनी परेशानी मà¥à¤à¥‡ दे दो’ या ‘देख लो आज हमको जी à¤à¤° के’ या ‘काहे को बà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥‡ बिदेस’ या ‘चले आओ सैंया रंगीले’ जैसे कà¥à¤› गीत जगजीतजी की खनकदार और ठसकदार आवाज़ में सà¥à¤¨à¥‡ जा सकते हैं और जो ये समà¤à¤¤à¥‡ हैं कि शौहर ख़यà¥à¤¯à¤¾à¤® साहब के गीत ही गाये उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तो जान लें कि ख़यà¥à¤¯à¤¾à¤® साहब से मिलने से पहले ही ग़à¥à¤²à¤¾à¤® मोहमà¥à¤®à¤¦ साहब के लिठवे’ दिल ठनादां’ में गीत गा चà¥à¤•à¥€ थीं। ठेठलोक गीत, विवाह गीत और पारमà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• गीत के लिठजगजीतजी की आवाज का कोई मà¥à¤•à¤¾à¤¬à¤¿à¤² नहीं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने फिलà¥à¤®à¤•à¤¾à¤° यश चोपड़ा की पतà¥à¤¨à¥€ पामेला चोपड़ा को अपना जोड़ीदार बनाया।
कà¤à¥€-कà¤à¥€ मेरे दिल में खà¥à¤¯à¤¾à¤² आता है’ ख़यà¥à¤¯à¤¾à¤® साहब के संगीत को शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯à¤¾à¤¨à¤¾ बनाठरखने में बहà¥à¤¤ बड़ा योगदान रहा है जगजीतजी का। जगजीत कौर जी के बिना संगीत मà¥à¤•à¤®à¥à¤®à¤² ही नहीं रहा है खयà¥à¤¯à¤¾à¤® साहब का। उनका संगीत à¤à¥€ दो रूह और à¤à¤• उनवान कहा जा सकता है। जगजीतजी की à¤à¤• और बड़ी पहचान रही और वो थी उनकी मेहमान नवाज़ी। खà¥à¤¦ खाना बनाना और आवà¤à¤—त करना उनका बहà¥à¤¤ बड़ा शौक रहा और बहà¥à¤¤ ही लज़ीज़, बहà¥à¤¤ ही सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ खाना बनाया करती थी और कमाल अमरोही साहब से लेकर जितने à¤à¥€ बड़े-बड़े फिलà¥à¤®à¤•à¤¾à¤° रहे हैं, जब à¤à¥€ मà¥à¤¯à¥‚जिकल सिटिंग के लिठख़यà¥à¤¯à¤¾à¤® साहब के घर जाते थे तो यह तय सा हà¥à¤† करता था कि जगजीत जी के हाथ का बना खाना खाना ही है।
कमाल साहब या यशजी के लिठवे à¤à¤¾à¤à¥€ थीं जबकि उमà¥à¤° में ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ अंतर ना होने पर à¤à¥€ संगीतकार मदन मोहन उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी बेटी के रूप में लेते थे। केपीजी फाउंडेशन यानी ख़यà¥à¤¯à¤¾à¤®, पà¥à¤°à¤¦à¥€à¤ª, जगजीत कौर अपनी समसà¥à¤¤ समà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ ज़रूरतमंद कलाकारों के लिठनà¥à¤¯à¥‹à¤›à¤¾à¤µà¤° कर गये हैं, जगजीतजी के 93 वरà¥à¤· की अवसà¥à¤¥à¤¾ में जाने के बाद अब à¤à¤• टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ के ज़रिठये तीनों हमारे बीच बने रहेंगे।