वाजिद भाई का ऐसे चले जाना हमारे लिए तो ज़मीन का हिल जाना है. उन्हीं की देखरेख में बड़े हुए हैं उन्होंने ही हमें बल्कि हमारी इस जनरेशन को संगीत की बारीकियों से अवगत कराया. हम उनके सगे चाचा के बच्चे हैं और इस जनरेशन को वाजिद भाई ने वाकई जोड़ कर रखा और वह चाहते रहे कि हम आगे आएं संगीत में नाम कमाएं और उन्होंने कभी भी, कोई भी चीज या बात जो छिपाने वाली होती है, ना तो कभी ऐसी कोई बात उनके दिमाग में कभी रही और न किसी बात को उन्होंने ऐसा दिखाने की कोशिश की कि ये तुम्हारे बस का नहीं है. उन्होंने तो हमारे लिए कॉलेज भी वही मीठीबाई चुना जिसमें खुद पढ़े.
वे हमेशा संगीत की बारीकियों की चर्चा करते रहते थे और हम लोगों को उन्होंने अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया. वे हमेशा चाहते रहे कि उनके जो भाई हैं सभी नाम कमाएं, संगीत की दुनिया में कुछ करें और अपने खानदान का नाम रोशन करें. हमेशा अगर हमारी तरफ से कभी फोन नहीं आता था तो वो खुद अपनी तरफ से फोन लगा देते थे, बुलाते थे. मतलब हमारी खैरियत पूछना ही उनकी खैरियत हुआ करता था. वे बेचैन हो जाते थे अगर हमें कुछ ज्यादा समय हो जाता था जब बात नहीं होती थी.
हम अगर एक वाक्य में उनको डिस्क्राइब करना चाहें तो ये कहा जा सकता है कि वे जितना जिये, संगीत के लिए और अपनों के लिए जिये.
उन्होंने कभी भी संगीत को अपने से दूर नहीं किया संगीत उनके साथ जुड़ा रहा और वे संगीत को लेकर ही जीते रहे. हमेशा घूमने जाएंगे कहीं गाड़ी में भी रहेंगे तो कुछ ना कुछ सुनाते रहेंगे, कुछ ना कुछ नया करते रहेंगे और वह उनकी खासियत थी उसी में जिया करते थे और हम लोगों की खाने-पीने की बैठकें होती थीं तो वहां भी वाजिद भाई संगीत की बातें ही करते थे. जो उनकी शख्सियत रही वह संगीत को समर्पित रही. वे इतने प्यारे इंसान रहे और ये बहुत बड़ी बात है सबसे पहले तो एक अच्छा इंसान कैसे होना चाहिए यह हमने उन्हीं से सीखा और हमारे खून में भी वही उतर आया. जो बारीकियां होती हैं, कि किस तरीके से सबसे बातें करना चाहिए, किस तरीके से पेश आना चाहिए और संगीत की हमारी जिंदगी में क्या अहमियत है, यह बहुत अच्छे से हमें सिखाया और वह खुद भी संगीत की अहमियत को जानते थे और वह जानते थे कि उनका वजूद जो है संगीत के साथ ही है. संगीत को वे बहुत-बहुत ऊपर रखते थे और हमेशा संगीत को ही समर्पित रहते थे.
प्यारे इंसान थे, बहुत ही सुरीले इंसान थे, बहुत ही मिलनसार थे और परिवार में को एक साथ बांध के रखने वाले इंसान थे वाजिद भाई.
आप देखिए कि स्टूडियो की खास बातें, कितना दूर क्या होना चाहिए, कितना दूर होना चाहिए माइक से, किस इंस्ट्रूमेंट को कहां रखना चाहिए यह सब बारीकियां जो कि हम जान सके उनकी ही वजह से.
संगीत में हम आज कुछ कर पा रहे हैं तो हमें कहना चाहिए कि हमारे भाई का बहुत बड़ा योगदान है और इसमें हमें कोई गुरेज नहीं है बताने में कि उन्होंने हमें बचपन से ही प्रोत्साहित किया. जब तब रिकॉर्डिंग में बुलवा लिया करते थे और समझाते थे कि ऐसे होता है सब और इस तरीके से हमें भी हिम्मत बनी और जब हमारा मौका आया तो हम भी उन सब चीजों को अमल में लाए. हम सब आज कुछ अपना नाम बना पाए या अपना मुकाम बना पा रहे हैं तो उसका बहुत बड़ा योगदान वाजिद भाई का रहा. अक्सर र हमने भी क्रिकेट खेली उनके साथ. व्यवहारिकता सीखी.
उन्हें ज़िंदगी भर कभी भी अपने से अलग नहीं कर पाएंगे. बहुत छोटी सी उम्र में हमारा साथ छोड़ कर चले गए लेकिन हमें ऐसे लेना चाहिए कि अल्लाह तआला ने ज्यादा उनकी जरूरत महसूस की होगी.
खबरें आ रही हैं कि किडनी का ऑपरेशन उनका ठीक नहीं हुआ, यह बात ठीक नहीं है. बीच में थोड़ी सी उनको दिक्कत आ रही थी तो वे अपने मित्र के अस्पताल में चेंबूर में जाकर भर्ती हुए. बताया गया है कि वहां पर कोरोना के कई मरीज़ थे. भाई को कोरोना था या नहीं था, ये नहीं पता. लेकिन रात में उन्हें अटैक आया था उसके बाद वे हमारे बीच में नहीं रहे.
संगीत से जुड़े हैं हम सभी तो वाजिद भाई को संगीत भरी श्रद्धांजलि हमने अर्पित की है- 'तेरे जैसा भाई' के रूप में!