संगीत के असंख्य स्वरसाधक! संगीत को असंख्य स्वरविवेक समर्पित. संगीत सत्संगियों के बीच ही जीवन जीकर मुक्त हुए कल्याण सेन जी आज. ६४ वर्ष भी पूरे नहीं हुए थे अभी. कभी संगीत के अलावा भी कोई बात हो सकती है, कल्याण सेन जी के रहते तो नहीं! लताजी से अलकाजी और मन्ना दा से सोनू-सानूदा तक वे अपनी हाज़री दर्ज कराये रहे! बहुत प्रफुल्लित हो बताते कि पिता श्री अरुण कुमार सेन ने ही लता मंगेशकर को या सितारा देवी को या रुक्मिणीदेवी अरुण्डेल को इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ के कुलपति रहते डी. लिट की उपाधि प्रदान की.
सचिन दा यानी सचिनदेव बर्मन पर पुस्तक लिख रहे थे और कई अनूठे विषयों पर लिखने की उनकी दिली इच्छा रही. तबला हारमोनियम के सिद्धहस्त और क्रिकेट की भी खासी जानकारी.
कोई 113 साल पहले सेनगुप्ता परिवार ढाका के नज़दीक सोनारंग से रायपुर आ बसा और फिर न सिर्फ वहीं का हो कर रह गया बल्कि संगीत की तपस्या कर रायपुर का नाम रोशन किया.
संगीत में स्नातकोत्तर कल्याण जी ने अपने बहुआयामी प्रतिभा के धनी छोटे भाई शेखर सेन के साथ 'शेखर कल्याण' रूपी जोड़ी बनाई और कई छत्तीसगढ़िया फिल्मों का सफल संगीत निर्देशन किया. दोनों गुणी भ्राताद्वय फिर मुंबई आ गये.
दोनों के लिए संगीत के साथ गायन और अभिनय का क्षेत्र भी खुला हुआ था. कल्याणजी ने भी धारावाहिकों में अभिनय किया. उनकी आवाज़ भी सराही गई. संगीतकार नौशाद उन्हें पसंद करते रहे और फिल्मों में पार्श्व गायक के रूप में मौका देने की तैयारी में रहे.
यहाँ शेखर सेन जी के लिए जैसे एक अलग ही दुनिया प्रतीक्षारत थी, उन्होंने एकांकी पात्र अभिनय की अपनी राह बनाई और तुलसी, कबीर, विवेकानंद, साहब, सूर बन देश विदेशों में जन जागृति फैलाई.
कल्याणजी ने संगीत निर्देशन का दामन ही थामे रखा, अब वे अपने पिता का नाम जोड़ अरुण कल्याण के रूप में संगीत देने लगे!
बंगाली ब्राह्मण खाने के शौकीन, बड़े विनम्र, शालीन, संगीत की बारीकियां सिखाने समझाने को तत्पर. रायपुर रहने लगे लेकिन जब भी मुंबई आते संगीतकारों के संगठन में आकर ठौर पाते.
नाम कर गये संगीतकारों के बारे में जानकारी लेना-देना उन्हें अच्छा लगता. शंकर, जयकिशन, रोशन, मदनमोहन, पंचम, लक्ष्मीकांत को याद कर कहा करते कि जल्दी चले गए. अब उन सभी की तरह श्री कल्याण सेनगुप्ता भी... जल्दी चले गए!
रविराज प्रणामी