à¤à¤•à¥‰à¤°à¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¨ पà¥à¤²à¥‡à¤¯à¤° सैयद अली नहीं रहे
'... और यह आ रहे हैं हमारे कà¥à¤°à¤¿à¤•à¥‡à¤Ÿà¤° अली à¤à¤¾à¤ˆ' रफी साहब के ये उदà¥à¤—ार हà¥à¤† करते थे जब सैयद अली à¤à¤¾à¤ˆ उनकी सालगिरह पर सफेद कपड़ों में चले आ रहे होते थे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤•à¤¬à¤¾à¤¦ देने और रफी साहब का यह जà¥à¤®à¤²à¤¾ माहौल को खà¥à¤¶à¤¨à¥à¤®à¤¾ बना देता था, 24 दिसंबर के दिन जब वे अपने परिजनों और अपने चाहने वालों के बीच घिरे होकर अपना जनà¥à¤®à¤¦à¤¿à¤¨ मना रहे होते थे। कà¥à¤°à¤¿à¤•à¥‡à¤Ÿ से सैयद अली à¤à¤¾à¤ˆ का कोई लेना-देना नहीं था पर रफी साहब की सालगिरह पर सफेद परिधान में जाना उनका अलगरज था।
सैयद अली à¤à¤¾à¤ˆ का मोहमà¥à¤®à¤¦ रफी साहब से 1971 में जॉनी वà¥à¤¹à¤¿à¤¸à¥à¤•à¥€ के माधà¥à¤¯à¤® से आमना सामना हà¥à¤† था जब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दोनों को à¤à¤• दूसरे से मिलवाया था दरअसल रफी साहब जाने वाले थे वरà¥à¤²à¥à¤¡ टूअर पर और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥‡ à¤à¤•à¥‰à¤°à¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¨à¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ की जरूरत थी और यह तलाश पूरी हà¥à¤ˆ सैयद अली लतीफ के रूप में जो कि उन दिनों अपने 'अली à¤à¤‚ड हिज़ गà¥à¤°à¥ˆà¤‚ड आरà¥à¤•à¥‡à¤¸à¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¾' के साथ देश à¤à¤° में पहचान बना चà¥à¤•à¥‡ थे। à¤à¤•à¥‰à¤°à¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¨ का मतलब सैयद अली हो जाà¤à¤—ा तथा टी सीरीज़ और टिपà¥à¤¸ की वरà¥à¤œà¤¨ रिकॉरà¥à¤¡à¤¿à¤‚गà¥à¤¸ जिसमें कि सोनू निगम, विनोद राठौड़ और पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ और बहà¥à¤¤ से गायक-गायिकाओं की लमà¥à¤¬à¥€ फेहरिसà¥à¤¤ शामिल है और उनके सारे के सारे à¤à¤²à¥à¤¬à¤®à¥à¤¸ के अरेंजमेंट के पीछे बहà¥à¤¤ बड़ा योगदान सैयद अली साहब का था जो कि तब तक न केवल à¤à¤• अचà¥à¤›à¥‡ अरेंजर के रूप में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हो चà¥à¤•à¥‡ थे बलà¥à¤•à¤¿ संगीतकार के रूप में फिलà¥à¤®à¥‡à¤‚ à¤à¥€ हासिल करने लगे थे। किसà¥à¤®à¤¤ से जब पहली फिलà¥à¤® मिली तब रूहानी आवाज़ के मालिक रफी साहब और आशाजी का à¤à¤• यà¥à¤—ल गीत रिकॉरà¥à¤¡ à¤à¥€ कर लिया लेकिन फिलà¥à¤® रà¥à¤• गई। इसी तरह à¤à¤• और फिलà¥à¤® 'पà¥à¤¯à¤¾à¤° की वादियाà¤' जिसमें अजय देवगन, शमà¥à¤®à¥€ कपूर और आशा पारिख थे, मà¥à¤–à¥à¤¯ अà¤à¤¿à¤¨à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥€ मासूमा हेरेकर के अचानक निधन से बंद है गई।
à¤à¤• बहà¥à¤¤ ही विनमà¥à¤° और बहà¥à¤¤ ही मिलनसार और हमेशा दूसरों की सहायता के लिठततà¥à¤ªà¤° अली à¤à¤¾à¤ˆ को आमद रही कि वे बिना किसी से सीखे बिना किसी का शागिरà¥à¤¦ बने à¤à¤•à¥‰à¤°à¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¨ पर महारत हासिल करते चले गठऔर à¤à¤•à¥‰à¤°à¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¨ के परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ कहलाने वाले लोगों में जà¥à¤¡à¤¼ गà¤à¥¤ सैयद अली à¤à¤¾à¤ˆ वैसे तो सिंधà¥à¤¦à¥à¤°à¥à¤— के आवाडे नाम की छोटी सी जगह में जनà¥à¤®à¥‡ और फिर कोल माइन में काम करते रहे फिर संगीत के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ उनका लगाव बना। महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° पà¥à¤²à¤¿à¤¸ में कारà¥à¤¯à¤°à¤¤ वालिद साहब लतीफ सैयद फà¥à¤°à¥à¤¸à¤¤ में हारà¥à¤®à¥‹à¤¨à¤¿à¤¯à¤® बजाते थे और छोटे सैयद वहीं से मौसिक़ी के होते चले गà¤. शà¥à¤°à¥‚ में मांग कर या à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¥‡ पर à¤à¤•à¥‰à¤°à¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¨ लेकर बजाते रहे फिर धीरे धीरे पैसे बचा कर अपना बाजा खरीद लिया. अपना आरà¥à¤•à¥‡à¤¸à¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¾ खड़ा किया जिसमें हेमंत कà¥à¤®à¤¾à¤°, तलत महमूद, महेंदà¥à¤° कपूर, टà¥à¤¨à¤Ÿà¥à¤¨, हेमलता और बाद में शबà¥à¤¬à¥€à¤° कà¥à¤®à¤¾à¤°, सà¥à¤·à¤®à¤¾ शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ , विनोद राठौर à¤à¥€ शिरकत करते रहे।
रविराज पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤®à¥€